Monday, June 23, 2025
spot_img
HomeCrimeअल्पसंख्यको के हितों पर करोड़ों का डाका

अल्पसंख्यको के हितों पर करोड़ों का डाका

देहरादून: उत्तराखंड की शांत वादियों में इन दिनों एक ऐसा तूफान उठ खड़ा हुआ है जिसने सत्ता गलियारों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है। मामला उन छात्रवृत्तियों से जुड़ा है, जिनका मकसद था समाज के अल्पसंख्यक तबके के बच्चों को बेहतर भविष्य देना। लेकिन अब सामने आ रहा है कि जिन हाथों में यह भरोसे की थैली सौंपी गई थी, उन्हीं हाथों ने उसमें सेंध लगाई।
भारत सरकार ने उत्तराखंड की सरकार को एक चिट्ठी भेजी है। ये कोई साधारण चिट्ठी नहीं है, बल्कि एक आईना है जिसमें सरकार को अपनी व्यवस्था की असल तस्वीर देखने को मिल रही है। इस चिट्ठी में कहा गया है कि राज्य के 91 संस्थान अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति में गड़बड़ी के संदिग्ध हैं।
और यह गड़बड़ी कोई नई नहीं है। इससे पहले भी राज्य में छात्रवृत्ति के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी की कहानियां आम होती रही हैं, लेकिन इस बार मामला और गंभीर है। वजह है केंद्र सरकार की सीधी निगरानी और फंडिंग। यानी पैसा दिल्ली से चला, और रास्ते में गायब हो गया अब उसकी तलाश की जा रही है।
देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर घोटाले के केंद्र में
जिन जिलों में सबसे ज्यादा संस्थानों पर शक है, उनमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर शामिल हैं। इन जगहों के नाम पहले भी कई बार अनियमितताओं में सामने आते रहे हैं, लेकिन इस बार खेल कुछ बड़ा लगता है।
जैसे ही ये चिट्ठी सचिव धीराज सिंह के पास पहुंची, उन्होंने सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिए कि एसडीएम की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की जाए। इसमें खंड शिक्षा अधिकारी और सहायक अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को भी रखा जाएगा। समिति को एक महीने के भीतर शासन को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
सरकार की तरफ से यह भी साफ कर दिया गया है कि यदि जांच में कोई संस्थान दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ एफआईआर
दर्ज की जाएगी। और अगर कोई सरकारी अफसर भी इस खेल में शामिल मिला, तो सीधे निलंबन की कार्रवाई होगी।
बता दे कि ये सारा घपला वर्ष 2021-22 और 2022-23 की छात्रवृत्ति योजनाओं से जुड़ा है। यानी दो साल तक चलता रहा खेल और अब जाकर इसकी भनक केंद्र को लगी। सवाल ये उठता है कि इस दौरान स्थानीय स्तर पर निगरानी कहां थी?
सरकार की योजनाएं कागज़ पर तो बहुत सुंदर दिखती हैं, लेकिन ज़मीन पर आते-आते उनमें कैसे दीमक लग जाती है, यह खबर उसी दीमक की दस्तावेजी तस्वीर है। और यह सिर्फ उत्तराखंड की बात नहीं, भारत सरकार ने अन्य राज्यों में भी ऐसी ही जांच के आदेश दिए हैं।
अब सवाल यह है कि क्या इन संस्थानों के छात्र आज भी ट्यूशन फीस की चिंता में हैं, जबकि किसी और की जेब में वो पैसा पहुंच चुका है? क्या सरकार को अब भी चिट्ठियों का इंतज़ार करना पड़ेगा, या एक सिस्टम तैयार होगा जो ऐसे घोटालों को जन्म लेने से पहले ही रोक सके?

RELATED ARTICLES

Most Popular